Wednesday, 23 September 2015

fuEu काव्यांशa dks /;kuiwoZd i<+dj iwNs x, izuksa ds mÙkj nhft,A  
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या? 
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये |
अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा |
धरती को सुन्दरतम करने की ममता में,
बीत चुका है कई पीढ़ियाँ वंश हमारा |
और अभी आगे आने वाली सदियों में ,
मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे |
इस प्यासी धरती के हित मैं ही लाया था,
हिमगिरी चीर, सुखद गंगा की निर्मल धारा|
मैने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर
वंध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए|
         i.            इन पंक्तियों का उचित शीर्षक लिखिए |
       ii.            मजदूर ने अनेक बार धरती पर क्या बनाया है ?
      iii.            मजदूर को देव लोक से कुछ लेना देना क्यों नहीं है ?
     iv.            मजदुर के पूर्वजों ने क्या कार्य किए ?
       v.            रेगिस्तान का कायाकल्प किसने और कैसे  किया ?

0 comments:

Post a Comment